जिन लोगों ने अन्ना हजारे के आंदोलन पर कीचड़ उछालने की कोशिश की वे भूल गए कि भारत में हमेशा से मजबूत समाज और कमजोर सरकार रही है। 8 अप्रैल, 2011 को अन्ना हजारे के भूख हड़ताल खत्म करने से एक दिन पहले मैं काहिरा में लोकतांत्रिक आंदोलन के उदारवादी सदस्यों के सामने मिस्र के भविष्य का भारतीय मॉडल पेश कर रहा था। सम्मेलन के बाद हममें से कुछ तहरीर चौक पर घूमने गए थे, जहां सरकार के खिलाफ प्रचंड आंदोलन हुआ था। अचानक मैंने खुद को मंच पर पाया और अल हिंद के करीब 37,000 प्रदर्शनकारियों को अपनी शुभकामनाएं दीं। अगले तीन मिनट तक मैं भारतीय लोकतंत्र के सबक के बारे में बताने की कोशिश करता रहा-चुनाव, मुक्ति, समानता नहीं, बल्कि कानून के शासन के ही असल मायने है। भारत में इसलिए भ्रष्टाचार फैला हुआ है क्योंकि यहां कानून का शासन कमजोर है।
उस रात तीन बजे मैं गोलीबारी की आवाज सुनकर उठ बैठा। मैंने सोचा लोग पटाखे छोड़ रहे है। तभी मेरे दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। मेरे मेजबान थे। उन्होंने फुसफुसाकर कहा कि सेना तहरीर चौक पर पहुंच गई है और मुझे वहां से निकल भागने को तैयार हो जाना चाहिए क्योंकि तीन मिनट का मेरा भाषण यूट्यूब पर जारी हो चुका है। मैं भयभीत हो गया। मैंने तुरंत कपड़े बदले, अपना लैपटॉप और पासपोर्ट संभाला और इंतजार करने लगा। इस बीच मुझे नींद का झौंका आ गया। सुबह सात बजे मेरी नींद खुली और मैंने पाया कि मैं अब तक जिंदा हूं। मैंने तहरीर चौक पर धुएं का गुबार देखा और टीवी चालू कर दिया। पता चला कि सेना जितनी तेजी से आई थी, उतनी ही तेजी से गायब हो गई। इस कार्रवाई में दो लोग मारे गए।
घर लौटकर मैंने राहत की सांस ली। मिस्र के दौरे ने भारत को देखने का मेरा नजरिया बदल दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का आंदोलन और मध्यपूर्व में लोकतांत्रिक आंदोलन ने सत्ता को चुनौती पेश की थी। निजी विमानों में उड़ने वाले राजनीतिक वर्ग का गरूर यह नहीं जानता कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसका हमला भारत में राजनीतिक शक्ति की सीमित प्रकृति को नहीं समझता। भारत में हमेशा से कमजोर सत्ता और मजबूत समाज रहा है। क्योंकि राजनीतिक सत्ता आम लोगों के दैनंदिनी जीवन से कटी हुई है, इसलिए हमने कभी भी इसे इतना घनीभूत नहीं होने दिया जैसा कि चीन में देखा जा सकता है, जो अपने मूल सामाजिक संस्थानों को बदल सके। चीन और रूस की निरंकुश सरकारे पूरे समाज को संपत्ति और व्यक्तिगत अधिकारों से वंचित कर सकती थीं। इस प्रकार की सत्ताएं दक्षिण एशिया में कभी नहीं रहीं। इसी कारण, चीन के मजबूत साम्राज्यों की तुलना में भारत में राजनीतिक फूट का इतिहास रहा है। आजादी के बाद भारत में अव्यवस्थित लोकतंत्र देखने को मिला है। 1960 में गुन्नार मिर्डाल ने इसे नरम राष्ट्र बताया था। आज, भारत निम्न स्तर से ऊपर उठता दिखाई दे रहा है। यह सत्ता की अधिक सहायता के बिना ही आधुनिक, लोकतांत्रिक और बाजार आधारित भविष्य की ओर बढ़ रहा है। इसके विपरीत, चीन की सफलता की राह राष्ट्र ने अतुलनीय ढांचागत सुविधाएं प्रदान कर तैयार की है।
भारतीय समाज में ऐसा क्या है जो सदियों से इसे एक सूत्र में बांधे हुए है। जवाहरलाल नेहरू ने इसे तीन शब्दों में परिभाषित किया है-गांव, जाति और परिवार। भारतीय समाज में पांच लाख से अधिक स्वायत्त, आत्मनिर्भर गांव है, दो हजार से अधिक वंशानुगत जातियां या उपजातियां है और संयुक्त परिवारों का मजबूत ढांचा है। हमारे समाज के बारे में दो पहलू महत्वपूर्ण है-पहला है वंश परंपरा और दूसरा यह विचार कि व्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण समूह है। जैसे-जैसे देश का शहरीकरण हो रहा है और सत्ता परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था के हाथों से निकलकर शहरी नागरिक समाज के हाथों में केंद्रित हो रही है, वैसे-वैसे समाज भी बदल रहा है।
भारतीय सत्ता कबीलाई समाज से विकसित हुई है। पहले कबीलाई राजा की अधिसत्ता उसके नातेदारों तक सीमित था। भूमि पर राजा का नहीं, बल्कि उसके कुटुंब का अधिकार था। यहां तक कि ईसापूर्व छठी सदी में, जब मगध जैसे संप्रभु राष्ट्र उभरने लगे थे, राजा की शक्तियां धर्म के नियम और उनकी व्याख्या करने वाले ब्राह्मण द्वारा नियंत्रित थीं। चीन की तरह कानून राजा का दास नहीं, बल्कि उसका स्वामी था, जिससे धर्म की रक्षा की उम्मीद की जाती थी। महाभारत में अधर्मी राजा को पागल कुत्ता कहा गया है और उसके खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाने का आह्वान किया गया है।
इतिहास पर इस सरसरी नजर से हमें सीख मिलती है कि एक सफल राष्ट्र में प्रभावी सत्ता और समाज का होना जरूरी है। एक कमजोर सत्ता भ्रष्टाचार सहती है, जनता के दिलोदिमाग में अनिश्चिता भरती है और कानून का शासन कमजोर पड़ता है। आम तौर पर लोग कानून का पालन इसलिए करते है क्योंकि उन्हे लगता है कि यह उचित है और समान रूप से सब पर लागू है। किंतु अगर पुलिसवाले, मंत्री और जज को खरीदा जा सकता है, जो लोगों का कानून के शासन से विश्वास उठ जाता है। भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार यही खतरा बना हुआ है। जब लोग देखते है कि शक्तिशाली और अमीर लोग साफ छूट जाते है, तो कानून के शासन के प्रति सम्मान कम हो जाता है। राष्ट्रमंडल भ्रष्टाचार के संबंध में सुरेश कलमाड़ी और 2 जी घोटाले ए राजा व अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी से नागरिक समाज की जीत प्रतिबिंबित होती है। यह भारत में कानून के शासन के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है, किंतु यह जीत तब तक पूरी नहीं होगी, जब तक दोषियों को सजा न मिल जाए।
जहां तक भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन का संबंध है, इसका स्पष्ट और विशिष्ट लक्ष्य है। यह कानून के शासन की स्थापना करने के साथ-साथ ऐसे संस्थान गठित करने के पक्ष में है जो उच्च पदस्थ लोगों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए। राजनीतिक वर्ग ने लोकपाल बिल को 40 सालों तक पारित नहीं होने दिया। लोकपाल बिल कोई रामबाण दवा नहीं है, किंतु यह सही दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम जरूर है।
इस सब के बावजूद भारत में संवैधानिक लोकतंत्र की सफलता सराहनीय है। मिस्र की तरह मैं भारत में सेना से भयाक्रांत नहीं हूं। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत विश्व की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बन चुका है। मिस्र एडवेंचर से मुझे एहसास हुआ कि तमाम कमियों के बावजूद भारत ने सही संतुलन बनाए रखने में सराहनीय प्रदर्शन किया है।
[गुरचरण दास: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार है]
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