Monday, December 13, 2010

बड़े पत्रकार दलाली कर रहे हैं, आप पत्रकारिता करें!नागरिक पत्रकारिता का नया दौर-मीडिया का अंडरवर्ल्ड

बड़े पत्रकार दलाली कर रहे हैं, आप पत्रकारिता करें!

by Dilip Mandal on Sunday, December 12, 2010 at 10:05pm

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ब्रिटेन के कार्डिफ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने देश के चार सबसे प्रतिष्ठित अखबारों की सामग्री का अध्ययन करके पाया कि 60 फीसदी खबरें ऐसी हैं जो वायर कॉपी है या फिर PR यानी पब्लिक रिलेशन सामग्री। ( स्रोत- निक डेविस की किताब, फ्लैट अर्थ न्यूज, पेज नंबर 52). सौ में सिर्फ 12 समाचार ऐसे हैं जिसके लिए संवाददाताओं ने पूरीसामग्री जुटाई थी। भारत में स्थिति इससे भी बुरी होगी। लेकिन ऐसे शोध यहां होते नहीं हैं।

(मेरा यह आलेख 11 दिसंबर, 2010 को राष्ट्रीय सहारा के हस्तक्षेप में छपा है)

कुछ साल पहले तक अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों के बारे में यह कहा जाता था कि ये चुनाव दरअसल टेलीविजन स्टूडियो में लड़े और जीते जाते हैं। इस बात में बेशक अतिश्योक्ति हो, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि अमेरिकी चुनावों में टेलीविजन माध्यम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन 2009 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान यह जुमला बदले रूप में सामने आया और कहा गया कि बराक ओबामा ने यह चुनाव फेसबुक और ट्विटर जैसी इंटरनेट साइट पर जीता। फेसबुक पर ओबामा के सिर्फ एक एकाउंट से 1.70 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हैं, जबकि उनके नाम के फेसबुक में कई खाते हैं। माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर ओबामा से 60 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं। जिस माध्यम के सहारे एक साथ इतने लागों तक पहुंचा जा सकता हो उसकी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस माध्यम की ताकत इसलिए भी ज्यादा है कि यहां सिर्फ ओबामा आपसे संवाद नहीं करते, आप भी ओबामा से संवाद करते हैं।



विडंबना यह है कि जिस अमेरिकी राष्ट्रपति के बारे में कहा गया कि उसने इंटरनेट पर चुनाव लड़ा और जीता है, वह राष्ट्रपति और उसका देश आज इंटरनेट की एक साइट पर लागातार आ रही सामग्री से तबाह है। विकीलीक्स पर हो रहे खुलासे से न सिर्फ अमेरिकी रक्षा और विदेश मंत्रालय परेशान हैं, बल्कि एक लोकतांत्रिक मुल्क के रूप में अमेरिका की साख का भी क्षरण हुआ है। अमेरिकी डिप्लोमेसी इस समय विश्वसनीयता का गंभीर संकट झेल रही है। और यह सब इंटरनेट पर मौजूद एक साइट की वजह से है।



वैसे देखें तो एक साइट के तौर पर विकीलीक्स में ऐसी कोई खास बात नहीं हैं। इस साइट में कोई तामझाम नहीं हैं, इसका राजस्व का कोई ठोस मॉडल नहीं है, इसके पीछे किसी कॉरपोरेट या देश की ताकत नहीं है। इसकी जो भी ताकत है, वह यूजर यानी इसे इस्तेमाल करने वालों की ताकत है। वे इस साइट पर ऐसी सामग्री डाल रहे हैं, जिससे न सिर्फ देशों के बीच रिश्ते बदल रहे हैं बल्कि इस बात की प्रबल संभावना है कि डिप्लोमेसी यानी राजनय के तौर तरीके अब निर्णायक रूप से बदल जाएंगे।



यहां यह बात नोट की जानी चाहिए कि संचार माध्यमों के जरिए ऐसा जबर्दस्त असर पैदा करने वाली साइट विकीलीक्स परंपरागत अर्थों में कोई मीडिया हाउस नहीं है। न ही इसमें सामग्री डालने के लिए किसी को पत्रकार बनना होगा। पत्रकारिता का हुनर और प्रशिक्षण यहां आवश्यक नहीं है। आपके पास अगर लीक करने लायक कुछ महत्वपूर्ण खुलासा या रहस्य या भेद या दस्तावेज है, तो यह साइट आपकी है।

इस मायने में विकीलीक्स, माध्यम की तुलना में संदेश के बलशाली होने की घोषणा है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन, किस और कितने बड़े मंच से बोल रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि क्या कहा जा रहा है। यह नया मीडिया है। यह लोगों का मीडिया है। यह खबरों के उपभोक्ता को निष्क्रिय नहीं रहने देता। अब तक जो व्यक्ति खबरों को निष्क्रिय उपभोक्ता था, वह अब अपनी बात कह सकता है, किसी की बात पर टिप्पणी कर सकता है, कोई दस्तावेज, तस्वीर, वीडिया या किसी की आवाज अपलोड कर सकता है। इसके लिए उसे कोई तामझाम या तंत्र नहीं चाहिए। यह नए जमाने की नागरिक पत्रकारिता है। 21वीं सदी के पहले दशक के अंत में इसकी ताकत को अब दुनिया देख रही है और भारत इसके असर से अछूता नहीं है।



नागरिक पत्रकारिता की परंपरागत परिभाषा के अनुसार अगर कोई व्यक्ति पेशेवर पत्रकार नहीं है और किसी मीडिया संस्थान से जुड़ा नहीं है, इसके बावजूद अगर वह समाचार सामग्री का सृजन कर रहा है तो वह नागरिक पत्रकार या सिटिजन जर्नलिस्ट है। सिटिजन जर्नलिस्ट के दायरे में उन पत्रकारों को भी गिना जाता है जो, सांस्थानिक ढांचे के बाहर या संस्था के अंदर ही अपेक्षाकृत स्वतंत्र माध्यम जैसे ब्लॉग के जरिएअपनी बात रखता हो। साथ ही अगर कोई दर्शक या पाठक किसी समाचार माध्यम से मिली सूचना की पुष्टि के लिए सूचना और समाचार के दूसरे माध्यमों का इस्तेमाल करता है और इस तरह अपनी राय बनाता है तो वह भी नागरिक पत्रकारिता कर रहा होता है।



विकीलीक्स के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि जो बात परंपरागत समाचार माध्यमों में नहीं आ रही थीं, वह विकीलीक्स के जरिए व्यापक जनसमुदाय तक पहुंच गईं। परंपरागत माध्यमों में जो खाली स्थान छोड़ दिया है, उसे ही विकीलीक्स ने भरा है। ये खुलासे किसी समाचार पत्र या चैनल पर भी किए जा सकते थे। लेकिन सरकारी नियमन, कारोबारी हितों और आत्म नियंत्रण (सेल्फ सेंसर) से बंधे होने के कारण इस तरह के खुलासे किसी अखबार या चैनल पर नहीं हुए। इस नाते इसे वैकल्पिक पत्रकारिता भी कह सकते हैं। इंटरनेट पर निगरानी की जटिलताओं के बीच जगह बनाते हुए विकीलीक्स ने ये खुलासे किए। नागरिक पत्रकारिता का यह श्रेष्ठ उदाहरण है।



नागरिक पत्रकारिता ने दरअसल पत्रकारिता की विधा को लोकतांत्रिक बनाया है। इसमें पढ़ने या देखना वाला यानी संचार सामग्री का उपभोक्ता सक्रिय भूमिका निभाने लगता है। पत्रकारिता की तिलिस्म को तोड़ने में इसकी बड़ी भूमिका है। आज एक व्यक्ति बिना किसी पत्रकारीय प्रशिक्षण के, 10 रुपए खर्च करके साइबर कैफे में बैठकर या अपने घर से एक ब्लॉग लिख सकता है और दुनिया भर में पहुंच सकता है। या फिर वह फेसबुक पर अपनी बात कह सकता है और हजारों लोग उसे पढ़ सकते हैं। ट्विटर और दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए आज अपनी बात पहुंचाना पहले की तुलना में काफी आसान हो गया है। जो बात मुख्यधारा में नहीं कही जा सकती, वह इन माध्यमों के जरिए कही जा सकती है। परंपरागत पत्रकारिता के भारी तामझाम और खर्च से अलग यह नई पत्रकारिता है।



पश्चिमी देशों में नई मीडिया की ताकत टेक्नोलॉजी के विस्तार की वजह से बहुत अधिक है। लेकिन भारत में भी इसकी ताकत बढ़ रही है। भारत में इस समय इंटरनेट के 8 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ता है।[i] अमेरिका के 22 करोड़ और चीन के 21 ग्राहकों की तुलना में यह संख्या छोटी जरूर है, लेकिन भारत इस समय इंटरनेट के सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी (ट्राई) के दिसंबर 2010 में जारी किए गए आंकड़ों (ये आंकड़े सितंबर, 2010 तक के हैं) के मुताबिक तेज रफ्तार इंटरनेट यानी ब्रॉडबैंड के ग्राहकों की संख्या एक करोड़ को पार कर गई है। अगस्त से सितंबर के बीच एक महीने में देश में 2 लाख, 10 हजार नए ब्रॉडबैंड कनेक्शन लिए गए।[ii] इंटरनेट पर आने जाने वालों का लेखा-जोखा रखने वाली दुनिया की प्रमुख संस्था कॉमस्कोर ने 2009 में किए गए अध्ययन के आधार पर बताया कि भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में 44 फीसदी लोग समाचार साइट पर भी जाते हैं। 15 साल से ज्यादा उम्र के डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग अक्टूबर महीने में समाचारों की वेबसाइट पर गए। एक साल में यह संख्या 37 फीसदी बढ़ी है।[iii] सोशल नेटवर्किंग साइट की लोकप्रियता भी भारत में बढ़ी है। फेसबुक के यूजर की संख्या दो करोड़ को पार कर गई है। (स्रोत- कॉमस्कोर)



इन आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इंटरनेट के फैलाव के मामले में भारत तेजी से दुनिया के विकसित देशों की ओर बढ़ रहा है। इसके आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि नागरिक पत्रकारिता का असर यहां भी बढ़ेगा। मुख्यधारा में जगह न मिलने वाले समाचारों को इन वैकल्पिक माध्यमों में जगह मिलेगी। मुख्यधारा के मीडिया से अलग रह गए समुदायों के लिए भी यह वैकल्पिक मंच बनेगा। यह सही है कि ऐसा पहले शहरी क्षेत्रों में होगा और कम आय वर्ग वाले शुरुआती दौर में इस पूरी प्रक्रिया से बाहर रहेंगे। इसके बावजूद संचार माध्यमों में लोकतंत्र मजबूत होगा। इस तरह के वैकल्पिक माध्यमों को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं। विकीलीक्स के खुलासे के साथ राष्ट्रीय हित और निजता जैसे सवाल भी मजबूत होकर उभरे हैं। लेकिन समग्रता में देखें तो अभी के संकेत कुल मिलाकर शुभ हैं।

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