प्रतिदिन/आलोक तोमर
प्रतिभा पाटिल विभूति नारायण राय से सहमत हैं?
(Its good that Mr Vibhuti Rai had said sorry about his comments now,....though I don't know why this talk erupted, what exactly that book is all about and what kind of 'characters' it potrayed...but if being a FEMINIST WRITER OF 'THAT BOOK' HE WAS TALKING ABOUT...a women got this kind of title then its better he look back to mythologies/history/literatures and read it...and not to mention only contemporary period, usually even most homely women are feminist by core of heart...have you seen woman protecting another women and their honour and rights???....its not that they are or there are -woman always against other woman!!! Somehow today we really need to debate what exactly 'FEMINISM' means.The way people take MORDERNISM AS JUST WESTERNISATION, SIMILARLY FEMINISM IS ONLY TAKEN AS WESTERNISATION AND 'FREEDOM' FROM ALL RITUALS AND TRADITIONAL WAY OF LIFE...WHICH IS NOT CORRECT!!...ITS 'FREEDOM' FROM ROTTENNESS OF ANY CIVILIZATION(WHETHER ITS WEST),CULTURE,TRADITION,ISM,THINKING,IDEOLOGIES,OR STRATA...AND IT GIVES A PERSON ITS FUNDAMENTAL RIGHTS...it cannot be determined by a persons food habits,clothing,language,strata,frankness of speach which even KABIR had...or any such superficial things only, but then these things do matter !!!....Its my appeal to people if they stop using this kind of frivilous expressions from now only, specially from public platforms to get few moments of mileage or footage...it will be of great service to our society....I know, or we all know that the way we talk, we create impressions about self, as well as others...whomever or what we are talking about....'JAISII BATEIN KAROOGE YA -SUNOOGE, DHAARNAYEIN BHI VAISEE HEE BANEINGII...THATS WHY MAHATMA GANDHIJI HAS SAID...'BURA MUTT SUNO,BURA MATT DEKHO,BURA MATT KAHO'....BUT THEN AS SHRI RAMCHANDRA HAS EATEN BERR WITH SABRI'S HAND( A DALIT WOMAN) OR GAUTAM BUDDHA HAS EATEN KHEER WITH SUJATA'S HAND(A DALIT WOMAN)...EVEM MAHATMA GANDHIJI USED TO VISIT ALL KIND OF SO CALLED NOT SO GOOD PLACES...TO TAKE CARE OF/CREATE AWARENESS OF RIGHTS AND WRONGS OF LIFE/THEIR FUNDAMENTAL RIGHTS/HEALTH/HYGIENE/HEALING TOUCH...ETC..AT VIDHWA AASHRAMS/KOTHAS/DALIT'S-POOR'S JHUGGI'S/OPPRESSED/DANGAGRAST/...ALL KIND OF PEOPLE WHO WERE SUFFERING BUT IGNORED...AT THAT TIME!!!....GOOD TO READ ABOUT THEM....I THINK 'VIBHUTIJI' SHOULD READ OUR HISTORY AND CULTURE(ONCE AGAIN WITH NEW PERSPECTIVE, AND NOT JUST FOR ACEDEMICS) TO KNOW OUR HERITAGE AND CULTURE-(AND ALSO ABOUT WOMEN)... TO UNDERSTAND WHO WE ARE???.....SIMILARLY WE ALL NEED TO READ ALL THIS TO UNDERSTAND OUR NATIONAL IDENTITY.....BUT AT THE SAME TIME .....TO BE BIT MORE HUMANE....LIFE OF THESE PEOPLE ARE REALLY INSPIRING...HOW UNIVERSAL THEY WERE,EVEN THEN...WHEN THEY WERE WORKING AT LOCAL LEVEL.)
विभूति नारायण राय भारतीय पुलिस सेवा में तब आए थे
जब देश में आपातकाल लगा हुआ था। वे 1975 बैच के उत्तर प्रदेश के आईपीएस अफसर हैं।
...अगर सेवा में रहे होते तो अब तक रिटायरमेंट का सैल्यूट ले कर, मायावती अगर चाहती
तो किसी आयोग के अध्यक्ष बन कर बैठे होते और लाल बत्ती की गाड़ी में घूम रहे होते।
लाल बत्ती की गाड़ी विभूति को लगभग तीन साल पहले
अर्जुन सिंह ने दे दी थी। अर्जुन सिंह से उनका कोई बहुत खास प्रेम हो ऐसा तो नहीं
था लेकिन अर्जुन सिंह के करीबी और वामपंथी होने का अभिनय करने वाले एक पत्रकार
विभूति की इस महान पद स्थापना के लिए वकील बने। दुनिया के पहले हिंदी
विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर विभूति नारायण राय की स्थापना हुई। वैसे वे
हिंदी के विद्यार्थी नहीं हैं और पुलिस में आने के पहले एक कॉलेज में जो विषय
पढ़ाया करते थे वह कम से कम हिंदी नहीं थी लेकिन विभूति नारायण राय की एक बड़ी
ख्याति साहित्यकार के तौर पर भी है।
अपवाद होते हैं मगर आम तौर पर आईपीएस और आईएएस
अधिकारियों को घर बैठे यह कीड़ा काट जाता है कि वे महान साहित्यकार है और उनकी लिखी
हुई रचनाओं को जनता के अधिक से अधिक वर्ग तक पहुंचना चाहिए। अब यह अफसर कलेक्टर या
एसपी होते है तो थानेदार और पटवारी तक इनकी किताबें खरीदते भी हैं और खरीदवाते भी
हैं। सरकारी ऑफिसाें में सजा कर भी रखते हैं कि साहब दौरे पर आए और उनकी लिखी
किताब को स्थापित देख कर चरित्रावली में कुछ अच्छी टिप्पणियां कर दें। सारे आईएएस,
आईपीएस लेखक ऐसे नहीं होते। अशोक वाजपेयी हैं, सुदीप बनर्जी थे जिनकी रचनाओं का
बाकायदा आदर किया जाता था।
आदर विभूति नारायण राय की रचना और रचनाधर्मिता के
अलावा आयोजन क्षमता का भी किया जाता है। आखिर एक साहित्यिक पत्रिका भी वे काफी
वक्त से निकाल रहे हैं और यह पूछना बेकार होगा कि इसके लिए कागज, छपाई और विज्ञापन
का खर्चा कहां से आता हैं? साहब के लिए सब सहज होता है। अपने छत्तीसगढ़ के पुलिस
महानिदेशक विश्व रंजन को ही ले लीजिए, पुलिस महानिरीक्षकों से ले कर थानेदारों तक
और खबर पाने के लिए आतुर पत्रकाराें तक उनकी कविताएं सुनने के लिए आतुर होते हैं।
वे कैसी कविताएं लिखते हैं और उनके कितने प्रशंसक हैं यह तो तब पता लगेगा जब वे
कुर्सी से उतर जाएंगे।
विभूति नारायण राय ने पुलिस में रहते हुए पुलिस के
तौर तरीकों के बारे में एक उपन्यास सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि को ले कर लिखा
था और उसका नाम था- शहर में कर्फ्यू। इस मामले में विभूति नारायण राय हिंदी
साहित्य के आईएएस जौहर साबित हुए कि इधर दंगा हुआ और उधर उपन्यास सामने आ गया।
पुलिस में रहते हुए पुलिस प्रशासन पर कुछ तीखी टिप्पणियां थीं इसलिए चर्चा भी खूब
हुई। दरअसल विभूति नारायण्ा राय के हिंदी साहित्य में अस्तित्व को ले कर यही सबसे
बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
विभूति धर्म विरोधी होने की हद तक धर्म निरपेक्ष
हैं यह तो सबको पता था मगर भारत में और खास तौर पर हिंदी में स्त्री विमर्श और
महिला लेखिकाओं के काम को ले कर उनकी जो राय सामने आई हैं वह अगर बहुत सदाशयता से
कहें तो लज्जित करने वाली है। अब तक सब जान चुके हैं कि विभूति की राय में बहुत
सारी हिंदी लेखिकाएं दरअसल छिनाल है जो अपने बिस्तर के अनुभव विस्तार से इसलिए
लिखती है कि उनकी किताब बिक सकें। विभूति ने यह टिप्पणी एकांत में नहीं की। भारत
का सबसे बड़ा साहित्यिक पुरस्कार, ज्ञानपीठ देने वाली संस्था की पत्रिका नया
ज्ञानोदय में एक लंबे साक्षात्कार में उन्होंने यह उच्च विचार व्यक्त किया।
नया ज्ञानोदय पत्रिका के संपादक रवींद्र कालिया की
पत्नी ममता कालिया भी जानी मानी लेखिका है और विभूति की पत्नी पद्मा भी लेखिका
होने का दावा करती हैं। पता नहीं विभूति की नजर में छिनाल कौन है? यह साहित्यिक
पौरुष दिखाने वाले विभूति की एक दिक्कत यह भी है कि वे संसार के एक मात्र हिंदी
विश्वविद्यालय के कुलपति हैं और इस नाते उनका यह बयान भारत की हिंदी विचारधारा का
एक प्रामाणिक दस्तावेज कहा जा सकता है। कहने को मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल
सिब्बल ने भी कहा है कि अगर कुलपति ने इस तरह की टिप्पणी की है तो जांच होगी और
उन्हें बर्खास्त भी किया जा सकता है। सिब्बल साहब को भारत की राष्ट्रपति के पति
देवी सिंह पाटिल से भी राय ले लेनी चाहिए क्योंकि हिंदी विश्वविद्यालय की कुलपति
भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और देवी सिंह पाटिल अचानक विभूति के अच्छे मित्र
बन गए हैं।
विभूति नारायण राय पर कोई पहली बार सवाल नहीं उठा
है मगर इतने शर्मिंदा करने वाले संदर्भ में पहली बार उठा है। उनके विश्वविद्यालय
में उनकी ही जाति के बहुत सारे विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर मौजूद हैं जिन पर पीएचडी
और अन्य पुस्तकों के लिए इंटरनेट से सीधे नकल करने का इल्जाम है। जब टीवी चैनलों
और इंटरनेट पर हंगामा खड़ा हुआ तो एक जांच कमेटी बिठाई गई और जांच के लिए वाराणसी
के जिन विद्वान को नियुक्त किया गया वे खुद एक ऐसे ही झमेले में फंसे मिले और
फिलहाल अदालत से याचना कर के स्टे ले आए हैं। चोर गुरु विभूति के संरक्षण में अब
भी अपने छात्रों को चोरी का ज्ञान दे रहा है। विभूति का आशीर्वाद काफी है।
विभूति नारायण राय को अर्जुन सिंह ने नियुक्त किया
था और अर्जुन सिंह के साथ दिक्कत यह है कि वे काले चोर पर भी भरोसा कर लेते हैं।
विभूति को उनके वामपंथी मित्र और अर्जुन सिंह के विश्वासपात्र रामशरण्ा जोशी ने
अर्जुन सिंह के घर का रास्ता दिखाया था और अर्जुन सिंह के विश्वासपात्र और अब कपिल
सिब्बल के सबसे खास संयुक्त सचिव सुनील कुमार कुरुप उन्हें संकटो से बचाने में लगे
हुए है। इसके बदले में विभूति ने कुरुप के एक मलयाली मित्र को अपने विश्वविद्यालय
में धन्य किया है और कई जाने माने विद्वानों को भी बेदखल कर दिया क्योंकि वे
विभूति की चोरियों में साथ देने को तैयार नहीं थे।
विभूति ने पूरी स्त्री रचनाधर्मिता का जो अपमान
किया है उससे उनका आदिम चेहरा निकल कर सामने आया है। अगर भारत सरकार इसी चेहरे को
भारतीय शिक्षा जगत और हिंदी का प्रतिनिधि बनाए रखना चाहती हैं तो वह जाने मगर
हिंदी के पाठक इतने दयावान या कुंठित नहीं हैं कि विभूति जैसे हवलदार किस्म के
कुलपति को भारतीय नारियों का अपमान करने का अधिकार दिए रखें। विभूति ने अपने आपको
कलंक साबित किया हैं। लेखिका हमारी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी हैं और अगर
उन्होंने विभूति को उनके कमों की सजा नहीं दी तो इसका एक अर्थ यह निकलेगा कि देश
की महिला लेखकों को छिनाल मानने की विभूति की राय से वे भी सहमत हैं। आशा है कि
भारत के राष्ट्रपति हिंदी के संसार को ऐसा लांछन लगाने का अवसर नहीं देगी और विभूति
को न सिर्फ वर्धा विश्वविद्यालय से बाहर करेगी बल्कि इस अपमानजनक टिप्पणी के एवज
में भारतीय दंड विधान की कई उपलब्ध धाराओं के इस्तेमाल का आदेश भी देंगी।
एक कहानी पहले भी सुनाई थी और विभूति का असली
चरित्र बताने के लिए संक्षेप में फिर सुन लीजिए। विभूति जब इलाहाबाद में प्रयाग
महाकुंभ के एसपी थे तो कुंभ परिसर में मांसाहार और मदिरा दोनो वर्जित थे। मगर
विभूति के आलीशान कैंप में रोज शाम को बकरे और मुर्गे की दावत होती थी और बोतले
खाली होती थी। धर्म निरपेक्ष विभूति अपने आपको कहते हैं लेकिन धर्म विरोधी होने का
यह कारनामा क्या आपको भी इसी परिभाषा में समझ में आता है?
Monday, August 2, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment