दुनिया भर में टाइगर को बचाने के लिए आजकल खासा ध्यान दिया जा रहा है। कॉर्पोरेट से लेकर एनजीओ तक विज्ञापनों और अन्य तरीकों से इस शानदार प्राणी के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रयासरत हैं। इसी बीच एक और खौफनाक तथ्य तब सामने आया जब ब्रिटिश टेबलॉइड डेलीमेल ने एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए घटते टाइगर की एक 'खास' वजह बताई।
चीन में एक जगह ऐसी भी है जहाँ टाइगर ईयर के चलते बढ़ती टाइगर प्रोड्क्ट्स की माँग की पूर्ति के लिए जंगल के राजा को बेहद गंदे व तंग पिंजरों में मरने के लिए रखा गया है। हड्डियों का ढाँचा बन चुके इस प्राणी को ऐसे नारकीय जीवन से सिर्फ मौत ही मुक्ति दिला सकती है और यही इस पार्क के लोग चाहते हैं। इनके लिए मरा टाइगर ज्यादा फायदेमंद है।
यह जगह है दक्षिण-पश्चिम चीन के गुईलिन में, जो चीन की एक प्रमुख टूरिस्ट सिटी के तौर पर जानी जाती है। आँकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि दुनिया में एक जगह पर सबसे ज्यादा टाइगर यहीं मौजूद हैं। बताया जाता है कि फिलहाल इस पार्क में करीब 1500 से ज्यादा साइबेरियन टाइगर हैं। पर यह खुश होने के बजाय विडम्बना ही है क्योंकि यहाँ के टाइगर बेहद मुश्किल और नारकीय हालात में जी रहे हैं। इस पार्क में पर्यटकों को न सिर्फ टाइगर दिखाया जाता है बल्कि यहाँ पर्यटक टाइगर के अंगों से बने प्रोड्क्ट्स भी खरीद सकते हैं।
गुईलिन पार्क के कर्मचारी बड़े गर्व से सबको बताते हैं कि इस पार्क में बेचे जाने वाले टाइगर प्रोड्क्ट्स ग्यारंटेड और ऑथेंटिक हैं क्योंकि यहाँ काफी टाइगर हैं और सबसे ज्यादा ब्रीडिंग दर है। कर्मचारी जोर देकर बताते हैं कि इन प्रोडक्ट्स में केवल प्राकृतिक रूप से या आपसी लड़ाई में मरे टाइगर के अंग ही उपयोग में लाए जाते हैं।
इस पार्क में दरअसल 'टाइगर फार्मिंग' की जाती है और टाइगर की ब्रीडिंग कराकर उसे एक प्रोड्क्ट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। वास्तविकता यह है कि यहाँ का टिकट भारतीय मुद्रा में लगभग 550 रुपए का है, जबकि एक टाइगर पर एक दिन का खर्च ही 1000 रुपए से ज्यादा होता है। इस पार्क का मुख्य मुनाफा होता है यहाँ बेचे जाने वाले टाइगर प्रोडक्ट्स से, जो काफी ऊँची कीमत होने के बाद भी खूब बिकते हैं।
हालाँकि अंतरराष्ट्रीय कानूनों से बँधे होने के कारण चीन में टाइगर को मारना गैर कानूनी है, पर इसका बड़ा आसान तोड़ भी निकाल लिया गया है। इसलिए यहाँ पर टाइगर्स को इतने बदतर हालात में रखा गया है कि वह बमुश्किल ही जिंदा है। जंगल में स्वछंद घूमने, शिकार करने वाले इस राजसी प्राणी को कम खाना, तंग व अँधेरे पिंजरों में रखा जाता है। इसके कारण अधिकतर टाइगर कुपोषण व बीमारियों के शिकार हैं। शून्य चिकित्सा सुविधाओं के चलते टाइगर तड़प-तड़प कर धीमी मौत मरते जा रहे हैं, जो पार्क अधिकारियों की नजर में प्राकृतिक मौत है और इस तरह यहाँ टाइगर प्रोड्क्ट्स का धंधा कानूनी जामा पहनकर फल-फूल रहा है।
यहाँ पैदा हुए टाइगर शायद ही सूरज की रोशनी देख पाते हैं। अधिकतर को पैरों में गठानें और अन्य बीमारियाँ हैं। जरूरत से ज्यादा संख्या होने से टाइगर आपस में अकसर लड़ते हैं, जिससे भी इनके शरीर में घाव हो जाते हैं और पिंजरों में साफ-सफाई न होने पर इन्फेक्शन से जल्दी ही यह मर जाते हैं।
मरने पर इनको 200 मील दूर पहाड़ो में बनी एक फैक्टरी में 'प्रोसेसिंग' के लिए भेज दिया जाता है जहाँ इनकी खाल उतारकर शरीर के सारे भाग निकाल लिए जाते है। यहाँ टाइगर की टनों हड्डियाँ 'बफर रॉ स्टाक' के नाम पर जमा की गई हैं। इसके अलावा 600 टाइगर और विभिन्न अंग तहखाने में बने डीप फ्रीजर में फ्रेश प्रोडक्ट की डिमांड पूरी करने के लिए रखे गए हैं।
इस पार्क का सबसे बिकने वाला प्रोडक्ट है 'टाइगर वाइन' जो चावल की शराब में टाइगर की हड्डियाँ मिला कर बनाई जाती है। चीनी मान्यता के अनुसार इसे पीने से लंबी उम्र और अर्थराइटिस से छुटकारा मिलता है। विदेशी पर्यटकों को हिदायत दी जाती है कि वापस अपने देश जाते समय टाइगर वाइन को असली पेकिंग से निकाल कर पेप्सी या थर्मस में डाल लें जिससे यह प्रतिबंधित शराब पकड़ी न जा सके।
ट्रेडीशनल चीनी दवाइयों में टाइगर के अंगों का खूब इस्तेमाल होता है, जैसे टाइगर के लिंग से कामोत्तेजक दवाई बनाई जाती है, मूँछ के बाल दाँत का दर्द दूर करने वाली दवाई में मिलाए जाते हैं तो इसकी आँखों से एपीलेप्सी की दवा बनती है। इसके अलावा चीनी मान्यता के अनुसार मर्दानगी बढ़ाने के लिए टाइगर के अंडकोषों की राख को भी शराब में मिलाकर पिया जाता है।
यह दुर्भाग्य की बात है कि मॉर्डनाइजेशन के बावजूद चीन में परंपरागत दवाइयों का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। इसके अलावा अन्य देशों में भी इस प्रकार के 'एक्जॉटिक ट्रीटमेंट' का चलन जोरों पर है। चीनी मान्यता के अनुसार साल 2010 को टाइगर ईयर माना जा रहा है, जिससे ऐसे प्रोडक्ट्स की माँग में जबरदस्त इजाफा हुआ है।
डेलीमेल के मुताबिक इन प्रोडक्ट्स को कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ बड़े अधिकारी भी कथित रूप से इस्तेमाल करते हैं। यहाँ तक की आधुनिक चीन के जनक माओत्से तुंग भी टाइगर वाइन का सेवन करते थे। ऐसी खबरों से भी इस व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
टाइगर की खाल से लेकर उसकी हड्डियाँ ऊँचे दाम (लगभग 225000 पॉउंड) पर बिकती हैं। इस वजह से भी चीन में इसका शिकार धडल्ले से होता है। मृत टाइगर से मिलने वाली कीमत इतनी होती है कि एक आम चीनी किसान दस साल मेहनत कर के भी कमा नहीं पाता। गरीब किसान से लेकर स्थानीय शिकारी इस वजह से जंगल में इसे मारने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
कानूनी रूप से चीन में वन्यजीवों के अंगों का व्यापार प्रतिबंधित है मगर ये कंपनियाँ बीच का रास्ता निकाल प्राकृतिक रूप से मरे जीवों के अंगों को मेडिसिनल प्रोडक्ट्स के नाम पर सरकारी संरक्षण प्राप्त कर इस्तेमाल करती हैं।
वन्यजीवों के संरक्षण के लिए भले ही कितने कड़े कानून बने पर जब तक इन जीवों का परंपरागत रूप से चली आ रही दवाइयों में, किसी भी ऐसी प्रथा जिसमें वन्यजीवों का शिकार या उन्हें नुकसान होता हो, पूरी तरह से प्रतिबंधित करे बिना इनका भविष्य खतरे में ही नजर आता है।
-प्रस्तुति : संदीप सिसोदिया
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Tuesday, February 23, 2010
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