Friday, February 3, 2012

बिल्ली क्यों चली हज को ?इन दिनों ये कहावत बहुत चल रही है... सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली...

बिल्ली क्यों चली हज को ?

इन दिनों ये कहावत बहुत चल रही है... सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली... इस कहावत को सुनकर जिज्ञासुओं के मन में ये सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर बिल्ली को हज जाने की जरूरत क्यों पड़ी?

क्या उसमें भक्ति भाव जाग गया कि उसने आव देखा न ताव और हज पर जाने का फैसला कर लिया... या फिर उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था और वह हज करके प्रायश्चित करना चाहती थी?
अगर कहावत की अंतर्ध्वनि सुनें तो ऐसा नहीं लगता... उससे तो यही प्रतीत होता है कि बिल्ली का मक़सद हज करना नहीं कुछ और था... ये इस बात से भी ज़ाहिर होता है कि वह चुपचाप हज करने नहीं जा रही, उसने इसका पूरा प्रचार किया है... सारे प्राणी जगत को मालूम है कि बिल्ली हज को जा रही है और वह भी सौ चूहे खाने के बाद...
इस कहावत से ये बात भी साफ़ है कि इसे बनाने वाला बिल्ली को अच्छी तरह से जानता था। वह उसके चाल-चरित्र-चेहरा से भली-भाँति वाकिफ़ था इसलिए उसने एक कहावत गढ़ी और बिल्ली की नीयत और इरादे से सबको वाकिफ़ भी करवा दिया।
ये भी स्पष्ट है कि कहावतकार बिल्ली-पक्ष का नहीं था... वह बिल्ली विरोधी था और उसे बिल्ली की नीयत में खोट नज़र आ रहा था... शायद उसका ताल्लुक चूहा-समाज से हो और वह इस बात से दुखी हो कि बिल्ली ने उसके कई मित्रों, परिचितों, परिजनों को हजम कर लिया। ये भी हो सकता है कि इस तज़ुर्बे ने उसकी आँखें खोल दी हों और उसने अपनी चूहा बिरादरी को बिल्ली से बचाने के लिए ये कहावत गढ़ डाली हो। वैसे इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कहावत रचने वाला चूहा न हो मगर चूहों का हमदर्द हो, उनका खैरख्वाह हो।
एक संभावना ये है कि बिल्ली चूहा-भक्षण की वजह से कुख्यात हो गई हो और चूहों ने उसके आसपास फटकना ही बंद कर दिया हो। ऐसा भी हो सकता है कि अति चूहा भक्षण से बिल्ली के मुखमंडल और आंगिक भाषा में एक तरह की आक्रामकता और खूंख्वारपन आ गया हो जो कि चूहों को डराता हो। ज़ाहिर सी बात है कि इससे बिल्ली को चूहों के लाले पड़ने लगे हों, उसके भूखे मरने की नौबत आने लगी हो। लिहाज़ा उसने अपने सखी-बिल्लियों से सलाह की हो और फिर अपनी इमेज बदलने के लिए हज पर जाने की घोषणा कर दी हो। उसे लगा हो कि इससे चूहों को लगेगा कि बिल्ली का ह्रदय परिवर्तन हो गया है और अब उसके पास जाने में कोई ख़तरा नहीं है। इस तरह वह संत के चोले में चूहा-भक्षण करती रहेगी।
उसकी सखी बिल्लियों ने उसे बताया कि यही तरकीब एक बार एक बगुला ने भी लगाई थी... मछलियाँ जब उससे डरकर भागने लगीं और भूखों मरने की नौबत आ गई तो उसने भगत का रूप धर लिया... वह बगुलाभगत ध्यान की मुद्रा में रहता था और जैसे ही मछलियाँ उस पर भरोसा करके करीब आती थीं वह उन्हें अपना शिकार बना लेता था।
लेकिन जिज्ञासुओं को ये बात समझ में नहीं आई कि इमेज बिल्डिंग के लिए बिल्ली ने हज यात्रा के बारे में ही क्यों सोचा... वह तीन दिन का उपवास भी तो कर सकती थी...? इसके लिए मीलों की यात्रा करने की मशक्कत करने की क्या ज़रूरत थी। आराम से एक जगह बैठती, लेमन जूस वगैरा पीती रहती। इससे बिल्ली समाज में उसकी धाक भी बन जाती... बड़ी-बड़ी बिल्लियाँ और बिल्ले आकर उससे मिलते और हो सकता है कि वह उनकी मुखिया भी बन जाती।
अगर किसी को इसका जवाब सूझे तो हमें भी बताए।

No comments: